धर्मराज की कहानी एक पौराणिक कथा है, जो जीवन में धर्म और दान-पुण्य के महत्व को दर्शाती है। कहानी के अनुसार, एक वृद्धा अपने जीवन में अनेक व्रत-पूजन करती थी, लेकिन उसने धर्मराज (यमराज) के लिए कोई विशेष पूजा नहीं की थी। मृत्यु के पश्चात, यमदूत उसे स्वर्ग ले जाने के दौरान विभिन्न बाधाओं का सामना करते हैं, जिन्हें वह अपने पूर्व दान-पुण्य के माध्यम से पार करती है। हालांकि, धर्मराज के लिए पूजा न करने के कारण स्वर्ग के द्वार उसके लिए बंद रहते हैं। वृद्धा धर्मराज से प्रार्थना करती है और सात दिनों के लिए पृथ्वी पर लौटकर विधिपूर्वक उनका व्रत और उद्यापन करती है, जिससे स्वर्ग के द्वार उसके लिए खुल जाते हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवनकाल में धर्मराज की कहानी अवश्य सुननी चाहिए। कहते हैं, इस कहानी को सुनने से वैकुण्ठ धाम के रास्ते खुल जाते हैं। कथा सुनने के बाद उसका उद्यापन करना चाहिए, जिसमें काठी, छतरी, टोकरी, चप्पल, बाल्टी, रस्सी, यमराज जी की लोहे की मूर्ति, लोटे में शक्कर भरकर, पांच बर्तन, धर्मराज जी की सोने की मूर्ति, चांदी का चांद, सोने का सूरज, चांदी का साठिया आदि वस्तुएं ब्राह्मण को दान में देनी चाहिए। ध्यान रखें कि प्रतिदिन चावल का साठिया बनाकर ही यह कहानी सुनी जाती है।
इस प्रकार, धर्मराज की कहानी जीवन में धर्म, दान और पुण्य के महत्व को रेखांकित करती है, जो मोक्ष प्राप्ति में सहायक होते हैं।